अंतिम रात
अंतिम रात
खलल पड़ी नींद में
तर-ब-तर पसीने से
उठ बैठा, महसूस किया
कहीं ये अंतिम रात तो नहीं
कुछ आशाएं मान्यताएं
नाचने लगीं आ सामने
बदहाल भटकते देखा
दिन में उसे
सोचूँ , कहीं भूला होगा रास्ता
कोई भला आदमी था
अपराधी या चोर तो नहीं
मन कहे नहीं नहीं
दुखियारा हालात का मारा होगा
पिशाच सरीखे के प्रश्न
डराते रहे , जगाते रहे मुझे
खलल पड़ी नींद में
तर-ब-तर पसीने से
उठ बैठा , महसूस किया
कहीं ये अंतिम रात तो नहीं
कड़वी घिनौनी तस्वीरें
बन बिम्म
हिम्मत पस्त करने लगीं
स्याह होती रात में
अंधेरों पर हंसते-हंसते
न जाने कब सो गया मैं
न जाने कब सो गया मैं
मौलिक रचना
उदय वीर भारद्वाज
भारद्वाज भवन
मंदिर मार्ग कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश 176001
मोबाइल 94181 ८७७२६
madhura
29-Jun-2023 04:22 PM
nicee
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Shnaya
27-Jun-2023 05:56 PM
Nice one
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Punam verma
24-Jun-2023 07:37 AM
Very nice
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